Vishal chauhan

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कवि का sucide note


जब मन मे मातम छाया था,
मैं कुछभी बोल ना पाया था,
उस अंधियारे कमरे के भीतर 
जब मन का दीप बुझाया था,
मैं किससे कहता और क्या कहता
यूँ तभी रहा मैं मौन खड़े,
बस इसीलिए मैं लगा रहा हूँ हँसकर अपनी मौत गले....

मैं हारा नही निराशा से,
ना जीत ही पाया आशा से,
ना मन मेरा यह प्यासा है,
बस अब ये वक़्त ज़रा सा है,
बार बार मैं चीखा कबसे
कोई सुन ना पाया मेरी बोली,
वक़्त के जख्मों से जो बहता
उस लहू से अपनी रातें धोली,
मैं नही चाहता मेरी आग में अब कोई भी और जले,
बस इसीलिए मैं लगा रहा हूँ हँसकर अपनी  मौत गले....

है खबर मेरी न राह सही ,
दिखता मुझको कुछ और नही,
माना हिम्मत से हल हो जाती 
ये मुश्किल सारी बड़ी बड़ी,
झूठे चेहरे आस्तिनी सांप,
मुझसे ना होता करुण विलाप,
लोगों ने नही तानों ने मारा दूजों से नहीं मैं खुद से हारा,
इस घोर निशा में मुझको खाने ये एकाकीपन दौड़ पड़े,
बस इसीलिए मैं लगा रहा हूँ हँसकर अपनी  मौत गले....।।

धन्यवाद।।

©vishal chauhan

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1 Comments

बहुत सुंदर कविता लिखी है

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